हमेशा हात में रहते हैं फूल उन के लिए किसी को भेज के मंगवाने थोड़ी होते हैं |
‘शुऊर’ ख़ुद को ज़हीन आदमी समझते हैं ये सादगी है तो वल्लाह इंतिहा की है |
वो मुझ से रूठ न जाती तो और क्या करती मिरी ख़ताएँ मिरी लग़्ज़िशें ही ऐसी थीं |
सामने आ कर वो क्या रहने लगा घर का दरवाज़ा खुला रहने लगा |
Best Shayari of Anwar Shaoor

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